वर्तमान में भारत के छः राज्यों में विधान परिषद है - बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना। इन सभी राज्यों के विधान परिषद सदस्य संख्या भिन्न भिन्न हैं।
आज हम आपको इन सभी छः राज्यों के विधान परिषद सदस्य संख्या को बतलाने वाले है।
विधान परिषद क्या है? किसी राज्य में विधान परिषद सदस्यों की संख्या कैसे तय होती है और किस चीज पर निर्भर करती है ? इनका निर्वाचन कैसे होता है? विधान परिषद के गठन, संवैधानिक प्रावधान, संरचना, निर्वाचन, कार्यकाल आदि की सारी जानकारी आपको मिलेगी।
विधान परिषद: परिचय
हमारे देश में विधायिका की द्वि-सदनीय व्यवस्था है। जैसे देश में संसद है, वैसे ही राज्यों में विधानमंडल (Legislature) होता है। संसद के दो सदन है - राज्य सभा और लोकसभा। वैसे ही राज्य विधानमंडल में भी दो सदन होते हैं- विधान सभा (Legislative Assembly) और विधान परिषद (Legislative Council). देश के संविधान में इस तरह का प्रावधान है।
लेकिन भारत के सभी राज्यों में विधान मंडल के दोनों सदन मौजूद नहीं हैं। भारत के 28 राज्यों में से छः राज्यों में दोनों सदन मौजूद हैं। भारत के 22 राज्यों में केवल विधान सभा ही मौजूद हैं।
संविधान का अनुच्छेद 171 किसी राज्य में विधानसभा के अलावा एक विधान परिषद के गठन का विकल्प भी प्रदान करता है।
विधान परिषद विधानमण्डल का एक महत्वपूर्ण अंग है। राज्यसभा की तरह विधान परिषद के सदस्य सीधे मतदाताओं द्वारा निर्वाचित नहीं होते। राज्य विधान परिषद की कार्यप्रणाली कई मायनों में राज्यसभा से मेल खाती है तथा इसके सदस्यों का कार्यकाल भी राज्यसभा सदस्यों की तरह ही 6 वर्षों का होता है।
विधान परिषद के हर सदस्य को एमएलसी यानि मेंबर ऑफ लेजिशलेटिव काउंसिल (MLC - Member of Legislative Council) कहा जाता है।
वर्तमान में भारत के छः राज्यों में विधान परिषद हैं।
विधान परिषद वाले राज्य
- आंध्र प्रदेश
- बिहार
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- तेलंगाना
- उत्तर प्रदेश
विधान परिषद वाले राज्य ट्रिक
विधान परिषद वाले राज्यों के नाम को याद करने की ट्रिक है - TUM KAB (तुम कब)
- T - Telangana (तेलंगाना)
- U - Uttar Pradesh (उत्तर प्रदेश)
- M - Maharashtra (महाराष्ट्र)
- K - Karnataka (कर्नाटक)
- A - Andhra Pradesh (आंध्र प्रदेश)
- B - Bihar (बिहार)
विधान परिषद सदस्य संख्या - 2023
राज्य एवं वहाँ की विधान परिषद सदस्य संख्या निम्न है:
- आंध्र प्रदेश - 58 सदस्य
- बिहार - 75 सदस्य
- कर्नाटक - 75 सदस्य
- महाराष्ट्र - 78 सदस्य
- तेलंगाना - 40 सदस्य
- उत्तर प्रदेश - 100 सदस्य
भारत में विधान परिषद सदस्यों की कुल संख्या
भारत में कुल 6 विधान परिषद वाले राज्य है। अगर इन राज्यों के विधान परिषद के सदस्यों की संख्या को जोड़ा जाए तो पूरे भारत में विधान परिषद सदस्यों की कुल संख्या 426 होती है।
विधान परिषद सदस्य संख्या कैसे निर्धारित होती है ?
राज्य में विधान परिषद सदस्य की संख्या विधान सभा के आकार पर निर्भर करती है। विधान परिषद में एक निश्चित संख्या तक सदस्य होते हैं।
विधान परिषद की अधिकतम सदस्य संख्या उस राज्य की विधान सभा की सदस्य संख्या का 1/3 और न्यूनतम 40 निश्चित है। इसका अर्थ यह है कि विधान सभा सीट के एक तिहाई से ज्यादा सदस्य विधान परिषद में नहीं होने चाहिए।
उदाहरण के तौर पर - उत्तर प्रदेश में 403 विधानसभा सदस्य हैं तो यूपी विधान परिषद में 134 से ज्यादा सदस्य नहीं हो सकते हैं। इसके अलावा विधान परिषद में कम से कम 40 सदस्य होना जरूरी है।
किसी राज्य में विधान परिषद सदस्यों की वास्तविक संख्या का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है।
विधान परिषद के बारे में अन्य प्रमुख जानकारी
विधान परिषद का इतिहास
भारत में द्विसदनवाद की उत्पत्ति ब्रिटिश शासन के समय से हुई। भारत में विधान परिषद का इतिहास ब्रिटिश काल में आरम्भ हुआ था।
मूल संविधान में अनुच्छेद 168 के तहत यह प्रावधान किया गया था कि कुछ अधिक जनसंख्या वाले राज्य जैसे आन्ध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में विधानमंडल द्विसदनीय होगा तथा शेष राज्यों में एक-सदनीय होगा।
मध्यप्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों ने समय-समय पर विधान परिषद का गठन किया, किन्तु बाद में कुछ राज्यों ने विधान परिषद को एक अनुपयोगी सदन मानते हुए इसको समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया।
संसद ने विधि द्वारा 1969 में पंजाब तथा पश्चिम बंगाल की, 1985 में आन्ध्र प्रदेश की तथा 1986 में तमिलनाडु की विधान परिषद को समाप्त कर दिया।
असम में 1950 से 1969 तक विधानपरिषद रही, फिर खत्म हो गई। जम्मू-कश्मीर में विधानपरिषद 1957 से 2019 तक रही।
वर्ष 1958 में गठित आंध्र प्रदेश विधानपरिषद को वर्ष 1985 में समाप्त कर दिया गया था। वर्ष 2007 में इसका पुनर्गठन किया गया।
हाल ही में कुछ राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, असम, राजस्थान आदि ने विधान परिषद के गठन के लिए संकल्प पारित किया है।
विधान परिषद: संवैधानिक प्रावधान
संविधान के छठे भाग में अनुच्छेद 168 से अनुच्छेद 212 तक राज्य विधानमंडल (दोनों सदनों) के गठन, कार्यकाल, नियुक्तियों, चुनाव, विशेषाधिकार एवं शक्तियों की व्याख्या की गई है। इसके अनुसार, विधानपरिषद उच्च सदन के रूप में राज्य विधानमंडल का स्थायी अंग होता है।
संविधान का अनुच्छेद 169 किसी राज्य में विधानपरिषद के उत्सादन या सृजन का प्रावधान करता है, वहीं अनुच्छेद 171 विधानपरिषदों की संरचना से जुड़ा है।
संविधान का अनुच्छेद 169 संसद को किसी राज्य में एक परिषद बनाने या समाप्त करने की अनुमति देता है, यदि राज्य की विधान सभा इस आशय का प्रस्ताव पारित करती है।
भारतीय संविधान में राज्यों को राज्य की भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या एवं अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए राज्य विधानमंडल के अंतर्गत उच्च सदन के रूप में विधानपरिषद (वैकल्पिक) की स्थापना करने की अनुमति दी गई है।
विधान परिषद के निर्माण की प्रक्रिया
किसी राज्य में विधान परिषद बनाने की प्रक्रिया भारत के संविधान के अनुच्छेद 169 में उल्लिखित है। राज्य विधान परिषद के गठन की प्रक्रिया इस प्रकार है:
- संकल्प: राज्य विधान परिषद बनाने या समाप्त करने के लिए, राज्य विधान सभा को एक प्रस्ताव पारित करना होगा। इस प्रस्ताव को सदन की विशेष बहुमत यानि मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई के बहुमत द्वारा पारित होना चाहिए।
- संसद की मंजूरी: राज्य विधान परिषद बनाने या समाप्त करने की शक्ति भारत की संसद में निहित है। एक बार जब राज्य विधानसभा प्रस्ताव पारित कर देती है, तो इसे मंजूरी के लिए संसद में भेजा जाता है।
- संसदीय प्रक्रिया: संकल्प को संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में एक विधेयक के रूप में पेश किया जाता है। विधेयक को संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रपति की सहमति: विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद, इसे भारत के राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति की सहमति मिलते ही राज्य विधान परिषद का गठन हो जाता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि राज्य विधान परिषद के निर्माण या समाप्ति के लिए भारत के संविधान में बदलाव की आवश्यकता है। हालाँकि, ऐसे कानूनों को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन विधेयक नहीं माना जाता है।
विधान परिषद का गठन
संसद एक विधान परिषद का (जहाँ यह पहले से मौजूद नहीं है) गठन कर सकती है या (जहाँ यह पहले से मौजूद है वहाँ) विघटन कर सकती है, यदि संबंधित राज्य की विधानसभा इस संबंध में संकल्प पारित करे। इस तरह के किसी प्रस्ताव का राज्य विधानसभा द्वारा पूर्ण बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है।
विधान परिषद की संरचना
संविधान का अनुच्छेद 171 विधान परिषदों की रचना या गठन के बारे में है। इसमें कहा गया है कि किसी राज्य में विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई (1/3) से अधिक नहीं होगी और किसी भी दशा में 40 से कम नहीं होगी।
विधान परिषद में एक सभापति और एक उपसभापति होता हैं जिनका चुनाव विधान परिषद के सभी सदस्य करते हैं।
विधान परिषद के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। विधान परिषद के सदस्यों का निर्धारण इस प्रकार होता है:
- 1/3 सदस्य - विधान सभा द्वारा निर्वाचित
- 1/3 सदस्य - स्थानीय निकायों द्वारा निर्वाचित
- 1/12 सदस्य - शिक्षकों द्वारा निर्वाचित
- 1/12 सदस्य - स्नातको द्वारा निर्वाचित
- 1/6 सदस्य - राज्यपाल द्वारा नियुक्त
विधान परिषद सदस्य बनने के लिए अर्हताएं
संविधान के अनुच्छेद 173 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति के राज्य विधान परिषद सदस्य बनने के लिये निम्नलिखित अहर्ताएँ होनी चाहिए -
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसकी आयु कम-से-कम 30 वर्ष हो।
- मानसिक रूप से असमर्थ और दिवालिया नहीं हो।
- जिस क्षेत्र से वह चुनाव लड़ रहा हो वहाँ की मतदाता सूची में उसका नाम होना चाहिए।
- चुने जाने के समय उसे संसद का सदस्य नहीं होना चाहिए।
- राज्यपाल द्वारा नामित होने के लिये व्यक्ति को संबंधित राज्य का निवासी होना अनिवार्य है।
विधान परिषद सदस्यों का निर्वाचन
विधान परिषद के कुल सदस्यों में से 5/6 सदस्यों का अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव होता है और 1/6 सदस्यों को राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है। विधान परिषद के कुल सदस्यों में से -
- 1/3 सदस्यों का चुनाव विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- 1/3 सदस्य स्थानीय निकायों जैसे-नगर पालिका, जिला बोर्ड आदि के द्वारा चुने जाते हैं।
- 1/12 सदस्य उन शिक्षकों द्वारा चुने जाते हैं जो राज्य के भीतर माध्यमिक विद्यालयों या इससे उच्च शिक्षण संस्थाओं में कम से कम तीन वर्ष से शिक्षण कार्य कर रहे हों।
- 1/12 सदस्य ऐसे व्यक्तियों द्वारा चुने जाते हैं जिन्होंने कम-से-कम तीन वर्ष पूर्व स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली हो।
- 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं, जो कि राज्य के साहित्य, कला, सहकारिता, विज्ञान और समाज सेवा का विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव रखते हों।
सभी सदस्यों का चुनाव ‘अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली’ के आधार पर एकल संक्रमणीय गुप्त मतदान प्रक्रिया से किया जाता है।
अभी बिहार विधान परिषद् में 27 सदस्य बिहार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से, 6 शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से, 6 स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से, 24 स्थानीय प्राधिकार से तथा 12 मनोनीत सदस्य हैं।
विधान परिषद का कार्यकाल
राज्य सभा के समान विधान परिषद एक सतत् सदन है। अर्थात् यह एक स्थायी सदन है जिसका विघटन नहीं होता।
विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। प्रत्येक दो साल पर इसके एक तिहाई सदस्य सेवा-निवृत हो जाते हैं।
विधान परिषद सदस्यों को शपथ कौन दिलाता हैं?
विधान परिषद के निर्वाचित सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ विधान परिषद का सभापति दिलाता हैं।
विधान परिषद के पदाधिकारी
अनुच्छेद 182 के अनुसार, विधान परिषद के दो प्रमुख पदाधिकारी होते हैं - सभापति और उपसभापति। इन दोनों का चुनाव विधान परिषद अपने सदस्यों में से करती है। इनके अधिकार व कार्य वही हैं जो विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के हैं। विधान परिषद के कार्यवाही का संचालन सभापति और उपसभापति द्वारा किया जाता हैं।
विधान परिषद सदस्यों के वेतन एवं भत्ते
सभी राज्यों में विधान परिषद सदस्यों को मिलने वाले वेतन एवं भत्ते समान नहीं हैं।
विधान परिषद के सदस्यों के वेतन एवं भत्ते विधान मंडल द्वारा तय होता हैं। उन्हें निश्चित वेतन, भत्ते और सुविधाएं मिलती है जो विधान सभा सदस्यों के बराबर होता है।
विधान परिषद के कार्य एवं शक्तियां
विधान सभा की तुलना में विधान परिषद के कार्य एवं शक्तियां सीमित है।
- साधारण विधेयक को दोनों सदनों में पेश किया जा सकता है परंतु असहमति की स्थिति में विधान सभा प्रभावी होती है।
- मुख्यमंत्री और मंत्रियों का चयन किसी भी सदन से किया जा सकता है, यदि विधान परिषद के सदस्य को मंत्री या मुख्यमंत्री बनाया जाता है तब भी वह विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है।
- वित्त विधेयक को सिर्फ विधानसभा में ही पेश किया जा सकता है। विधान परिषद वित्त विधेयक को न ही अस्वीकृत कर सकती है और न ही 14 दिनों से अधिक रोक सकती है। 14 दिनों के बाद विधेयक को विधानपरिषद से स्वतः ही पारित मान लिया जाएगा।
- राज्यसभा के लिये राज्यों से जाने वाले प्रतिनिधियों और राष्ट्रपति के निर्वाचन में विधानपरिषद का कोई योगदान नहीं होता है।
- विधानसभा को विधानपरिषद के सुझावों का अध्यारोहण करने का अधिकार प्राप्त होता है।
विधान परिषद और विधान सभा के बीच अंतर
- विधान सभा राज्य की विधायिका का निचला सदन है जबकि विधान परिषद राज्य विधानमंडल का ऊपरी सदन है।
- विधान सभा भारत के सभी राज्यों में मौजूद है जबकि विधान परिषद केवल आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में मौजूद है।
- विधान सभा एक अस्थायी निकाय है जिसका कार्यकाल केवल 5 वर्ष का होता है जिसके बाद यह भंग हो जाती है।जबकि विधान परिषद एक स्थायी सदन है जो कभी भंग नहीं होता है।
- विधान सभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से किया जाता है जबकि विधान परिषद के सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
- अध्यक्ष विधान सभा का पीठासीन अधिकारी होता है जबकि सभापति विधान परिषद का पीठासीन अधिकारी होता है।
- विधान सभा की अधिकतम सदस्य संख्या 500 सदस्यों की है तथा न्यूनतम सदस्य संख्या 60 सदस्यों की है। विधान परिषद के सदस्यों की अधिकतम संख्या विधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या की एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती। सदस्यों की संख्या 40 से कम नहीं होनी चाहिए।
- विधान सभा का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम आयु 25 वर्ष होनी चाहिए। जबकि विधान परिषद की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु 30 वर्ष है।
विधान परिषद की भूमिका
विधान परिषद राज्य की विधायिका का महत्वपूर्ण घटक है। विधान निर्माण की प्रक्रिया में अपना बहुमूल्य सुझाव संशोधनों के माध्यम से प्रस्तुत करके यह सदन उल्लेखनीय योगदान देता है।
विधान परिषद विधानसभा के निर्णयों की समीक्षा करने और सत्तापक्ष के निरंकुशतापूर्ण निर्णयों पर अंकुश लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस व्यवस्था को नियंत्रण और संतुलन (Check and Balance) सिद्धांत के अनुसार किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए आवश्यक माना जाता है। यह विधानसभा द्वारा जल्दबाजी में लिये गए फैसलों पर नज़र रख सकती है।
उच्च सदन शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों को एक मंच प्रदान करता है, जो सरकार की जन-कल्याण योजनाओं के माध्यम से राज्य के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं। इस व्यवस्था द्वारा उन लोगों को भी विधायिका में सीधे अपना योगदान देने का मौका मिलता है जिन्हें किन्हीं कारणों से प्रत्यक्ष चुनावों से नहीं चुना जा सका हो।
विधान परिषद की आलोचनाएँ
जहाँ विधानपरिषद के पक्षकार इसे विधानसभा की कार्यवाही और शासक दल की निरंकुशता पर नियंत्रण रखने के लिये महत्त्वपूर्ण मानते हैं, वहीं कई बार राज्य विधानमंडल के इस सदन को समय और पैसों के दुरुपयोग की वजह बता कर इसकी भूमिका और आवश्यकता पर प्रश्न उठते रहते हैं।
राज्य सरकार के निरंकुश फैसलों/आदेशों को न्यायालय व अन्य संवैधानिक संस्थाओं में चुनौती देकर सरकार की निरंकुशता पर लगाम लगाई जा सकती है।
विधानपरिषद राज्यसभा की तुलना में काफी प्रभावहीन होती है तथा अधिकांश विशेषज्ञों द्वारा इसे समय और धन के अपव्यय का कारण माना जाता है। यह विधि निर्माण की प्रक्रिया में देरी कर सकता है। साथ ही, इसे राज्य के बजट पर बोझ माना जाता है।
आलोचकों के अनुसार, समाज के अलग-अलग वर्ग के सदस्यों के नाम पर राजनीतिक दल अपने अधिक-से-अधिक कार्यकर्ताओं को सरकार में लाने के लिये इस सदन का प्रयोग करते हैं। इसका उपयोग उन नेताओं को संगठित करने के लिये भी किया जा सकता है जो चुनाव नहीं जीत पाए हैं।
निष्कर्ष
विधान परिषद राज्य विधानमंडल का ऊपरी सदन हैं। वर्तमान में भारत के छः राज्यों में विधान परिषद मौजूद हैं। यह राज्य की विधायिका में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।
विधान परिषद की उपयोगिता को लेकर इसकी आलोचनाएँ भी की जाती हैं। विधान परिषद को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक संसोधन किए जाने की आवश्यकता हैं।
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