उच्च एवं निम्न प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

आज हम प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य (Objectives of teaching science at primary stage) को जानेंगे।

प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

शिक्षण प्रक्रिया की सफलता के लिए लक्ष्य एवं उद्देश्य निर्धारित करना आवश्यक है।

विज्ञान शिक्षण के सामान्य उद्देश्यों / लक्ष्यों से तात्पर्य विज्ञान शिक्षण के माध्यम से बालक के दैनिक जीवन के व्यवहार में होने वाले अपेक्षित परिवर्तनों से है जैसे - बालक वैज्ञानिक चिन्तन एक सोच का विकास वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, विकास के प्रति रूचि एवं क्रमबद्धता, पूर्व कार्य करने को आदत का निर्माण आदि ।

विज्ञान शिक्षण के विशिष्ट उद्देश्यों से तात्पर्य नियत कक्षा अवधि में सीमित साधनों के प्रयोग से शिक्षक द्वारा किसी विशेष पाठ या प्रकरण के शिक्षण अधिगम से बालक के व्यवहार में आने वाले सम्मानित अपेक्षित परिवर्तनों के निर्धारण से है। इनका प्रयोग केवल शिक्षण तक ही सीमित नहीं है अपितु यह बालक की उपलब्धि के मापन से भी सम्बन्धित है। इनका मापन एवं मूल्यांकन बालक के व्यवहार से सम्बन्ध में होता है इसलिए जब इनकों व्यवहारिक पदों से लिखते हैं तब इनको व्यवहारिक उद्देश्य भी कहते हैं।

विज्ञान शिक्षण के सामान्य उद्देश्य

विज्ञान शिक्षण के सामान्य उद्देश्य निम्नलिखित है -

  1. तथ्यों की क्रियात्मक सूचना प्रदान करना।
  2. विज्ञान में रूचि उत्पन्न करना।
  3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना।
  4. यांत्रिक कौशल का विकास करना।
  5. क्रियात्मक संकल्पनाएँ बनाने में सक्षम बनाना।
  6. विज्ञान संरचना की प्रशंसा व उनके प्रयोग को समझना।
  7. सिद्धांतों का क्रियात्मक अवबोध सुनिश्चित करना।
  8. समस्या समाधान संबंधी कौशल का विकास करना।

प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

विभिन्न शैक्षिक सीमितियों एवं आयोगों ने इस स्तर पर उद्देश्यों का निर्धारण अपने अपने अनुसार किया है। प्रमुख सीमितियों एवं आयोगों द्वारा इस स्तर पर निर्धारित किये गये विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित है -

आलइंडिया सेमीनार ऑन टीचिंग ऑफ सांइस इन सेकेन्डरी स्कूलस रिपोर्ट- मुदालियर आयोग द्वारा उत्पन्न विज्ञान शिक्षण प्रति जागरूक के फलस्वरूप सन् 1956 में हिमाचल प्रदेश में आल इंडिया सेमीनार ऑन टीचिंग ऑफ सांइस इन सेकेन्डरी स्कूलस का आयोजन किया गया। इसमें विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों पर गहनता से विचार किया गया। इस सेमीनार की रिर्पोट के अनुसार प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य के निम्न प्रकार होने चाहिए।

प्राथमिक विद्यालय स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

  1. भौतिक एंव सामाजिक वातावरण में रूचि जाग्रत करना ।
  2. निरीक्षण, अन्वेषण, वर्गीकरण एवं क्रमबद्ध चिन्तन की आदत का विकास करना एवं समझाना।
  3. छात्र की प्रहस्तनीय, रचनात्मक एवं आदविस्कारी शक्तियों को विकसित करना।
  4. प्रकृति एवं उसके संसाधनों के संरक्षण की आदत एवं प्रकृति के प्रति प्रेम को जाग्रत करना।
  5. स्वस्थ अर्थात् साफ सफाई युक्त जीवन मापन की आदतों को विकसित करना

उच्च प्राथमिक विद्यालय स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

उपरोक्त विर्णित उद्देश्यों के साथ साथ इस स्तर पर विज्ञान शिक्षण के कुछ अन्य उपयुक्त उद्देश्य इस प्रकार है-

  1. छात्रों को विज्ञान एवं प्रकृति के बारे में विस्तृत जानकारी देना।
  2. छात्रों में सामान्यीकरण की योग्यता का विकास करना तथा इसको दैनिक जीवन की समस्याओं के समाधान में प्रयोग करने योग्य बनाना।
  3. छात्रों को विज्ञान के हमारे दैनिक जीवन मापन के तरीकों पर पडने वाले प्रभावों को समझाने योग्य बनाना।

कोठारी कमीशन (1964-66 ) - भारतीय शिक्षा आयोग (1964-66) के अध्यक्ष डी.एस. कोठारी की रिपोर्ट की संस्तुतियों के अनुसार प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित है -

निम्न प्राथमिक स्तर पर

इस स्तर की प्रथम अवस्था पर बालक के सामाजिक, भौतिक एवं जैविक वातावरण पर ध्यान देना चाहिए।

कक्षा एक व दो की अवस्था में साफ सफाई, स्वस्थ आदतों के निमार्ण एवं बालक की निरीक्षण क्षमता के विकास पर बल देना चाहिए।

कक्षा तीन व चार के स्तर पर स्वयं की साफ सफाई को अध्ययन में सम्मिलित करना चाहिए।

कक्षा चार एवं पाँच के स्तर पर बालकों को सामाजिक तत्वों व वैज्ञानिक मापन की ईकाई के लिए अन्तराष्ट्रीय बालकों में भौतिक एवं जैविक वातावरण से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्यों, प्रत्ययों, सिद्धान्तों की समझ विकसित करने पर भी बल देना चाहिए।

उच्च प्राथमिक स्तर पर

इस स्तर पर विज्ञान शिक्षण द्वारा बालक के ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ उसकी तार्किक चिन्तन योग्यता द्वारा निष्कर्ष के साथ एवं निर्णय लेने की क्षमता के विकास पर ध्यान देना चाहिए।

इस स्तर पर एकीकृत विज्ञान शिक्षण के स्थान पर भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान व खगोल विज्ञान पर अलग-अलग अध्ययन क्षेत्र के रूप में ज्ञान प्रदान कराना आरम्भ करना चाहिए जो कि बालक को भविष्य के लिए एक प्रभावी वैज्ञानिक आधार प्रदान करेगा।

ईश्वर भाई पटेल समिति (1977)

इस समिति ने महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित बेसिक शिक्षा के सिद्धान्तों को स्वीकार करते हुए कार्य शिक्षा की शैक्षिक तन्त्र का भाग बनाने पर विशेष जोर दिया है। इसके अनुसार बालक की दस वर्ष तक की विद्यालय शिक्षा में विज्ञान शिक्षण के निम्न उद्देश्य होने चाहिए -

सीखने के औपचारिक उपकरणों जैसे साहित्यक साक्षरता संख्यात्मक योग्यता तथा हाथ से कार्य करने सम्बन्धी कौशलों का विकास करना चाहिए।

प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र में अध्ययन एवं प्रयोगों के निरीक्षण के द्वारा ज्ञान का अर्जन करना।

खेल कूद के द्वारा शारीरिक शक्ति एवं टीम भावना का विकास करना।

शिक्षा को कार्य परक बनाने को ध्यान में रखते हुए बालकों को समाज के लिए उपयोगी एवं उत्पादक कार्य की योजना बनाने एवं उसके क्रियान्वन के कौशलों से परिचित कराना।

परिवार विद्यालय एवं समाज के साथ सहयोगी व्यवहार की आदतों को विकसित करना।

प्रकृति सौन्दर्य के निरीक्षण एवं कलात्मक क्रियाओं में प्रतिभाग के द्वारा सौनदर्यात्मक प्रत्यक्षीकरण एवं पुनः क्रियात्मकता विकास करना ।

समुदाय की सेवा एवं विभिन्न सामुदायिक प्रक्रियाओं में प्रतिभाग की इच्छा शक्ति का विकास करना।

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