व्रत कथा: लपसी तपसी की कहानी | lapsi tapsi ki kahani

व्रत कथा: लपसी तपसी की कहानी | lapsi tapsi ki kahani

लपसी तपसी की कहानी भारत में एक लोकप्रिय लोककथा है। यह एक धार्मिक कहानी है जो हमें भक्ति के सही अर्थ के बारे में एक महत्वपूर्ण सबक सिखाता हैं।

हिंदू धर्म में कथाओं का काफी महत्व है। अलग-अलग धार्मिक अवसर पर अलग-अलग कथायें कही और सुनी जाती हैं। ऐसी ही एक लोककथा लपसी व तपसी की भी है। इसे कार्तिक महीने में विशेष तौर पर सुनी जाती है। आज हम आपको वही lapsi tapsi ki kahani बताने जा रहे हैं।

लपसी तपसी की कहानी (lapsi tapsi ki kahani)

लपसी और तपसी नामक दो भाई थे। तपसी हमेशा भगवान की तपस्या में लगा रहता था, जबकि लपसी सवा सेर लापसी (दलिया, घी और चीनी से बना एक प्रकार का व्यंजन) बनाकर भगवान को भोग लगाकर खुद खा लेता था।

एक दिन दोनों में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि दोनों में भगवान का बड़ा भक्त कौन है। लपसी ने कहा कि वह प्रतिदिन सवा सेर लापसी का भोग लगाता है इसलिए वह भगवान का सबसे बड़ा भक्त हैं। तपसी ने कहा कि वह हमेशा भगवान की तपस्या में लीन रहता है इसलिए वही भगवान का सबसे बड़ा भक्त है।  तभी वहां से गुजर रहे नारद मुनि ने उन्हें देख लिया। पूछने पर उन्होंने अपने विवाद का कारण उन्हें बताया। लपसी ने कहा कि सवा सेर लापसी का भोग लगाने पर वह बड़ा भक्त है और तपसी तपस्या करने की वजह से खुद को भगवान का बड़ा सेवक कहा। तब नारद जी ने कहा - इसका फैसला मैं कर दूंगा।

अगले दिन जब लपसी और तपसी अपनी-अपनी भक्ति में लग गए तो नारद जी ने चुपके से सोने की दो भारी अंगूठी दोनों के आगे रख दी। जब लपसी की नजर उस पर पड़ी तो उसने अंगूठी पर कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन तपसी ने तपस्या करते हुए चुपचाप उसे घुटनों के नीचे दबा लिया।

इसके बाद जब नारद मुनि फिर वहां आए तो दोनों फिर कौन बड़े का सवाल दोहरा दिया। जिसे सुन नारद जी ने तपसी को खड़ा होने के लिए कहा। खड़े होते ही तपसी के नीचे दबी अंगूठी नीचे गिर गई। जिसके बाद नारद जी ने तपसी से कहा कि तपस्या करने पर भी तुम्हारे मन में चेारी का भाव है, जबकि भगवान को भोग लगाकर खुद ही जीमने वाले लपसी में ये भावना नहीं है। इसलिए दोनों में लपसी बड़ा है। ये सुन तपसी शर्मिंदा होकर नारदजी के चरणों में गिर पड़ा और अपनी तपस्या का फल मिलने का उपाय पूछा।

तब नारद जी ने कहा - "यदि कोई गाय, कुत्ते और अन्य बेबस जानवरों की रोटी नहीं बनाएगा, तो उसके पुण्यों का फल तुझे मिलेगा। यदि कोई ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा नहीं देगा, तो उसके पुण्यों का फल तुझे मिलेगा। जो दीये से दीया जलाएगा तो उसके पुण्यों का फल तुझे मिलेगा। इसी तरह यदि कोई सारी कहानी सुनकर तुम्हारी कथा नहीं सुनेगा तो उसका पुण्य फल भी तुझे ही मिलेगा।"

उसी दिन से हर व्रत कथा कहानी के साथ लपसी तपसी की कहानी भी सुनी और कही जाती है।

लपसी तपसी की कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती हैं ?

प्रत्येक लोककथा के माध्यम से हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाप्रद बातें सीखने को मिलती हैं। लपसी तपसी की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा अधिक महत्वपूर्ण है। हमें अपने कार्यों में हमेशा ईमानदार और शुद्ध रहना चाहिए। सच्ची भक्ति इस बात में नहीं है कि हम क्या करते है, बल्कि इस बात में है कि हम ऐसा क्यों करते हैं।

निष्कर्ष

lapsi tapsi ki kahani एक ऐसी लोककथा है जो हमें भक्ति का वास्तविक अर्थ बतलाती हैं। उम्मीद है आप भी इस कथा के द्वारा भक्ति का वास्तविक अर्थ समझ गए होंगे।

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